DRS लेने के मामले में कितनी सफल है भारत की सबसे सफल जोड़ी?
अंपायर्स कॉल को लेकर इतनी बहस क्यों है?
नवनीत झा
24-Feb-2024
80.3.. ऑन फ़ील्ड अंपायर धर्मसेना ने lbw की ज़ोरदार अपील को नकार दिया है लेकिन अब भारत टीवी अंपायर का रुख़ नहीं कर सकता, हालांकि कप्तान रोहित शर्मा की आवाज़ स्टंप माइक पर रिकॉर्ड हुई है और वह यह कहते हुए सुनाई दिए हैं कि गेंद ने बल्ले का बाहरी किनारा लिया था। लेकिन ये क्या? अल्ट्राएज तो बता रहा है कि गेंद ने बल्ले को छुआ तक नहीं था और हॉकआई यह कि गेंद तो सीधा मिडिल स्टंप से जाकर टकराती !
ऑली रॉबिंसन जब सिर्फ़ सात रन के निजी स्कोर पर खेल रहे थे तब रवींद्र जाडेजा की गेंद रॉबिंसन के पवेलियन जाना का रास्ता तय कर चुकी थी। हालांकि असफल रिव्यू का कोटा पूरा हो जाने के चलते भारत डीआरएस का लाभ नहीं ले सकता था।
DRS (डिसीज़न रिव्यू सिस्टम) का जब पहली बार अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में प्रयोग किया गया था, तब भारत उस प्रयोगशाला का हिस्सा था। भारत और इंग्लैंड के बीच जारी मौजूदा टेस्ट श्रृंखला में भले ही DRS को लेकर ज़्यादा नाराज़गी मेहमान टीम के कप्तान ने जताई हो लेकिन मेहमानों के अलावा यह सुविधा अब तक मेज़बानों पर भी मेहरबान नहीं हुई है।
रांची टेस्ट में पहले दिन के खेल की समाप्ति तक दोनों टीमों ने कुल 59 रिव्यू लिए थे। इंग्लैंड (26) ने भारत (33) से सात रिव्यू कम लिए थे। इन रिव्यू में लगभग 77 (76.92) फ़ीसदी रिव्यू इंग्लैंड के पक्ष (20) में नहीं गए थे। जबकि भारत द्वारा लिए गए कुल रिव्यू में भी लगभग 73 (72.72) फ़ीसदी रिव्यू (24) भारत के पक्ष में नहीं गए।
भारत ने जो 33 रिव्यू लिए थे उसमें लगभग आधे रिव्यू भारत की संभवतः सबसे सफल जोड़ी ने लिए थे। इन रिव्यू की सफलता दर जाडेजा और रविचंद्रन अश्विन की महानता से मेल नहीं खा रही थी। मौजूदा सीरीज़ में अब तक जाडेजा और अश्विन द्वारा भारत की बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी के दौरान लिए गए कुल 16 रिव्यू में सिर्फ़ तीन ही रिव्यू ही सफल हुए थे।
जाडेजा चोट के चलते विशाखापटनम टेस्ट नहीं खेल पाए थे। जबकि अश्विन भी पारिवारिक मेडिकल इमरजेंसी के चलते राजकोट में पूरा एक दिन गेंदबाज़ी नहीं कर पाए थे। इसके बावजूद जाडेजा और अश्विन ने मिलकर भारत के आधे रिव्यू लिए।
रांची टेस्ट के इतर भारत ने इस सीरीज़ में सिर्फ़ राजकोट टेस्ट (9) में इंग्लैंड (11) की तुलना में कम रिव्यू लिए थे और सफलता के पैमाने पर इंग्लैंड (2) की तुलना में एक अधिक रिव्यू (3) भारत के पक्ष में गया था। लेकिन राजकोट में जाडेजा और अश्विन द्वारा लिए गए कुल तीन रिव्यू में एक भी भारत के पक्ष में नहीं गया। जबकि राजकोट में ही भारत के ख़िलाफ़ गए कुल रिव्यू में आधे रिव्यू जाडेजा (1) और अश्विन (2) द्वारा ही लिए गए थे।
DRS लेने का अंतिम फ़ैसला टीम के कप्तान का ही होता है और यह मैदान पर कप्तान की ज़िम्मेदारियों का हिस्सा है। पूर्व भारतीय क्रिकेटर संजय मांजरेकर के मुताबिक DRS के संबंध में भारत को नए सिरे से योजना बनाने की दरकार है।
मांजरेकर ने रांची टेस्ट के पहले दिन का खेल समाप्त होने पर ESPNcricinfo मैच डे हिंदी में कहा, "जाडेजा के पास रॉबिंसन के ख़िलाफ़ रिव्यू लेने का विकल्प नहीं था, जब रॉबिंसन पूरी तरह से प्लंब लेग बिफ़ोर थे। उसके पीछे कारण यह भी है कि मैं मानता हूं कि एक छोटा सा इश्यू है भारतीय बॉलिंग अटैक में कि मोहम्मद सिराज, अश्विन और जाडेजा जब विकेट का करीबी मामला होता है तब बहुत ज़्यादा भावुक हो जाते हैं तो फिर जो कप्तान होता है, उस पर बहुत ज़्यादा प्रेशर आ जाता है। तो मुझे लगता है कि इस पर एक प्लान होना चाहिए और अभ्यास भी होना चाहिए कि बहुत ज़्यादा भावुक ना हों क्योंकि फिर कप्तान का काम बहुत ही मुश्किल हो जाता है। क्योंकि कई बार आप देखते हैं कि रोहित शर्मा शायद यह सोच रहे हैं कि (रिव्यू) लेना है या नहीं लेना लेकिन उनके ऊपर गेंदबाज़ों की भावनाओं का इतना दबाव होता है कि 'ले लो प्लीज़ ले लो', और फिर रोहित शर्मा को लेना पड़ता है तो इस पर थोड़ा संयम और नियंत्रण होना चाहिए।"
भारत ने इस सीरीज़ में सबसे कम रिव्यू विशाखापटनम (7)) में लिए थे जब जाडेजा भारतीय एकादश का हिस्सा नहीं थे। जबकि इससे सिर्फ़ एक कम रिव्यू (6) भारत रांची टेस्ट के पहले दिन ले ही चुका था। भारत ने रांची टेस्ट के पहले दिन कुल छह रिव्यू लिए जिसमें चार रिव्यू भारत के पक्ष में नहीं गए। इन चार असफल रिव्यू में तीन असफल रिव्यू जाडेजा की गेंदबाज़ी के दौरान लिए गए थे, जिसमें एक अंपायर्स कॉल भी शामिल था।
रांची टेस्ट में भारत की बल्लेबाज़ी आने से पहले तक इस सीरीज़ में अब तक दोनों टीमों को मिलाकर अंपायर्स कॉल के ज़रिए कुल 10 असफल रिव्यू आए थे। जिसमें इंग्लैंड के ख़िलाफ़ छह तो भारत के ख़िलाफ़ चार निर्णय गए थे। हालांकि शनिवार को रांची में शुभमन गिल, रजत पाटीदार और अश्विन अंपायर्स कॉल पर आउट दिए गए और अब आंकड़ों के स्तर पर अंपायर्स कॉल भारत की तुलना में इंग्लैंड के लिए अधिक फायदेमंद सिद्ध हो रहा था।
दोनों टीमों के पक्ष और विपक्ष में आए अंपायर्स कॉल के निर्णय में राजकोट टेस्ट में ज़ैक क्रॉली के ख़िलाफ़ आया निर्णय भी शामिल था और इसमें विशाखापटनम में टॉम हार्टली के पक्ष में आया वो निर्णय भी शामिल था जब ऑनफ़ील्ड अंपायर द्वारा हार्टली कोLBW के बदले कॉट बिहाइंड करार दिए जाने के चलते टीवी अंपायर को ऑनफ़ील्ड अंपायर के फ़ैसले के साथ जाना पड़ा था। यह इस सीरीज़ में अब तक अश्विन की गेंद पर असफल साबित हुए पांच रिव्यू में से एक था। अश्विन ने विशाखापटनम में गेंदबाज़ी के दौरान सिर्फ़ दो असफल रिव्यू ही लिए थे लेकिन ख़ुद अश्विन के लिए यह टेस्ट बतौर गेंदबाज़ ऐतिहासिक था। पांच वर्षों में यह पहला मौक़ा आया था जब अश्विन घरेलू सरज़मीं पर भारत के लिए खेलते हुए टेस्ट की किसी पारी में विकेटलेस गए थे।
इंपैक्ट अंपायर्स कॉल, विकेट हिटिंग अंपायर्स कॉल और मार्जिन ऑफ़ एरर के बिंदुओं को अपने भीतर समाहित किए हुए अंपायर्स कॉल की बहस डिसीज़न रिव्यू सिस्टम जितनी ही कालजयी है। ख़ुद इस सीरीज़ के दौरान मेहमान टीम के कप्तान बेन स्टोक्स अंपायर्स कॉल के प्रावधान को हटाए जाने की मांग भी कर चुके हैं। क्रिकेट जगत अमूमन अंपायर्स कॉल के ज़रूरी और गैरज़रूरी होने के तर्क के साथ दो हिस्सों में बंटा रहता दिखाई देता है। लेकिन क्या अंपायर्स कॉल का प्रावधान वाकई अप्रासंगिक है?
मांजरेकर कहते हैं, "अंपायर्स कॉल मतलब.. जो बहुत ही करीबी मामला होता है। डीआरएस जो आया है क्रिकेट की गेम में वो इससे निपटने के लिए कि अंपायर कोई एकदम ही ग़लत निर्णय दे दे। पहले बहुत ऐसे निर्णय होते थे जब लेग स्टंप के बाहर गेंद गिरती थी तब भी बल्लेबाज़ को लेग बिफ़ोर आउट दे दिया जाता था। जब इनसाइड एज लगा होता था तब भी। DRS ने उन सारी ग़लतियों को समाप्त कर दिया है। अब अगर आप 19-20 में भी कुछ मांग करते रहेंगे तो इस बहस का कोई अंत ही नहीं होगा। तो इसलिए मुझे नहीं लगता कि अंपायर्स कॉल का जो प्रोब्लम है उसके ऊपर जल्द कोई निर्णय लिया जाएगा।"
DRS के संदर्भ में अंपायर्स कॉल LBW के फ़ैसले के दौरान प्ले में आता है। ख़ुद LBW का फ़ैसला अनुमान पर आधारित होता है, जिसमें टीवी अंपायर को छोड़कर ऑनफ़ील्ड अंपायर, मैदान में मौजूद खिलाड़ी, सभी को अपने अपने स्तर पर फ़ैसला लेने के लिए अनुमान लगाना होता है। अंपायर्स कॉल भी उसी अनुमान पर आधारित फ़ैसलों का एक हिस्सा भर है। DRS की तकनीक 100 फ़ीसदी एक्यूरेट नहीं है और इसकी एक मिसाल PSL के मौजूदा सीज़न में भी देखने को मिली थी। ऐसे में करीबी मामलों में ऑनफ़ील्ड अंपायर की प्रासंगिकता को दरकिनार करना कहां तक जायज़ ठहराया जा सकता है?
नवनीत झा ESPNcricinfo में कंसल्टेंट सब एडिटर हैं।