क़िस्मत, मेहनत और द्रविड़ की पहली वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी का सफ़र
द्रविड़ के हिस्से में भी अब वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी है, जिसे बतौर खिलाड़ी वह हासिल नहीं कर पाए थे
नवनीत झा
02-Jul-2024
"मैं किसी तरह के रिडेंप्शन में विश्वास नहीं रखता।"
भारतीय टीम के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ जब यह बात बोल रहे थे तब भारत के हाथ में टी20 वर्ल्ड कप की ट्रॉफ़ी आ चुकी थी। जिसका इंतज़ार द्रविड़ और पूरे भारत को 17 वर्षों से था। कोई ICC ट्रॉफ़ी जीते भी एक दशक से अधिक का लंबा समय बीत चुका था।
तीन दिनों के भीतर यह दूसरा मौक़ा था जब द्रविड़ ने भारत के इस विश्व कप अभियान के परिदृश्य में ख़ुद को केंद्र में रखे जाने से असहमति जताई थी। द्रविड़ ने सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे #DoItForDravid अभियान पर ना सिर्फ़ यह कहा था कि उनका इन चीज़ों में विश्वास नहीं है बल्कि उन्होंने इस अभियान को ना चलाए जाने की मांग भी की थी।
द्रविड़ ने कहा, "मैं वास्तव में इस चीज़ में विश्वास नहीं रखता कि आपको कोई चीज़ किसी इंसान के लिए हासिल करनी है। मुझे यह कोट बेहद पसंद है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से यह पूछता है, 'तुम्हें माउंट एवरेस्ट फ़तह क्यों करना है?' और वो जवाब देता है, 'क्योंकि वो वहां है।' मैं भी वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी इसीलिए जीतना चाहता हूं क्योंकि यह टूर्नामेंट चल रहा है। यह किसी व्यक्ति के लिए नहीं है, ट्रॉफ़ी जीतने के लिए है। मैं सिर्फ़ अच्छा क्रिकेट खेलने में विश्वास रखता हूं और हां, कोई चीज़ किसी व्यक्ति के लिए करना, यह कुछ ऐसा है जिसमें मेरा विश्वास नहीं है।"
2007 में भारत के शर्मनाक प्रदर्शन पर दुःख और गुस्सा व्यक्त करता एक भारतीय प्रशंसक•AFP
भले ही ख़ुद द्रविड़ रिडेंप्शन और ट्रिब्यूट में विश्वास ना रखते हों, लेकिन उनके इर्द गिर्द क्रिकेट जगत में होने वाली चर्चाओं में एक चर्चा उनके खाते में वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी के अधूरेपन को लेकर भी होती थी। सीनियर लेवल पर द्रविड़ ने बतौर खिलाड़ी तीन वर्ल्ड कप खेले थे और बतौर कोच मिलाकर भी यह उनका छठा विश्व कप था। बतौर कोच द्रविड़ दो बार वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी की दहलीज़ पर आकर चूक गए थे, जबकि बारबेडोस में 17वें ओवर में हार्दिक पंड्या की गेंदबाज़ी करने से पहले यह ट्रॉफ़ी एक बार फिर भारत के हाथ से फिसलती नज़र आ रही थी।
हालांकि मैच के बाद द्रविड़ ने मैदान में ही मीडिया से बात करते हुए एक बार फिर स्पष्ट किया कि वह पूरी मेहनत से क्रिकेट खेलने में विश्वास रखते हैं। उनका ध्यान सिर्फ़ बतौर कोच अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाने की ओर ही था। इसके अतिरिक्त उनके मन में और कोई बात नहीं चल रही थी।
1999 में जब द्रविड़ ने अपना पहला वर्ल्ड कप खेला था, तब द्रविड़ उस टूर्नामेंट में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ थे। वह भी तब जब भारत सेमीफ़ाइनल तक में भी नहीं पहुंच पाया था। 2003 में द्रविड़ उपकप्तान थे, लेकिन फ़ाइनल में भारत ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ इकतरफ़ा मैच में हार गया था। 2007 में द्रविड़ ख़ुद कप्तान थे और उस वर्ल्ड कप में भारत को पहले ही राउंड में बाहर होने पर मजबूर होना पड़ा था। द्रविड़ ने बतौर खिलाड़ी वर्ल्ड कप ना जीत पाने पर यही कहा कि उन्हें इस बात का संतोष हमेशा रहा कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की और यही चीज़ उनके हाथ में थी।
2007 में श्रीलंका से ग्रुप चरण में भारत की हार के दौरान कप्तान द्रविड़ और अन्य खिलाड़ी•AFP
हालांकि बतौर कोच द्रविड़ के कार्यकाल में भारत 2022 के टी20 वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में हार गया। 2023 में भारत में हुए वर्ल्ड कप फ़ाइनल की हार के सदमे से निकलने के लिए भारतीय टीम को अब वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी से कुछ भी मंज़ूर नहीं था। फ़ाइनल में मिली हार के बाद द्रविड़ ने ख़ुद मीडिया के सामने आकर सवालों की बौछार को झेलने का फ़ैसला किया था।
वर्ल्ड कप हारने का दुःख 19 नवंबर 2023 को अहमदाबाद के मैदान में भारतीय खिलाड़ियों की आंखों से बह रहे आंसू बयां कर रहे थे। भारतीय खिलाड़ियों को उस समय कैसा महसूस हो रहा होगा उसका थोड़ा बहुत अंदाज़ा हिंदी न्यूज़ चैनल आज तक को दिए सूर्यकुमार यादव के इंटरव्यू के एक अंश से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने एकदिवसीय वर्ल्ड कप फ़ाइनल से पहले के माहौल के बारे में बताते हुए कहा था कि टीम बस से मैदान जाते समय टीम के इर्द-गिर्द ऐसा वातावरण था, जैसे मैदान में जाकर बस ट्रॉफ़ी उठाने की देर है।
इस जगह से ट्रॉफ़ी हाथ में ना होने के ज़ख़्म को एक वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी ही भर सकती थी। भले ही ख़ुद द्रविड़ रिडेंप्शन में विश्वास ना रखते हों लेकिन इस वर्ल्ड कप के दौरान बहुत कुछ ऐसा घटित हो रहा था जो IPL फ़ाइनल के बाद रिंकू सिंह और शाहरुख़ ख़ान की हुई छोटी चर्चा से अधिक जुदा नहीं लग रहा था जिसमें रिंकू सिंह KKR के IPL जीतने को गॉड्स प्लान करार दे रहे थे।
भारत जिस टीम से एकदिवसीय वर्ल्ड कप फ़ाइनल हारा था, सुपर 8 में भारत उसी टीम के वर्ल्ड कप से बाहर होने का कारण बना। छह महीने पहले रोहित का कैच लेकर ट्रैविस हेड ने मैच में भारत के डॉमिनेशन को समाप्त किया था और भारत और वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी के बीच का असली अंतर बने थे। और छह महीने बाद अब रोहित ने हेड का कैच लेकर ऑस्ट्रेलिया को ना सिर्फ़ मैच से बल्कि टूर्नामेंट से बाहर होने की कगार पर खड़ा कर दिया था, रोहित की 92 रनों की आतिशी पारी ऑस्ट्रेलिया और जीत के बीच असली अंतर बनी थी। सेमीफ़ाइनल में भारत ने उसी टीम को हराया था, जिसने 2022 में सेमीफ़ाइनल में ही भारत की रफ़्तार पर ब्रेक लगाया था।
ख़ुद द्रविड़ के संदर्भ में भी बहुत चीज़ें ऐसी घटित हो रही थीं, जो उनके बतौर खिलाड़ी और कप्तानी के दौर की यादों का ताज़ा कर रही थीं। भारत ने जब अपना पहला टी20 वर्ल्ड कप जीता था तब उससे पहले द्रविड़ की कप्तानी अपनी अंतिम सांसें गिन रही थी। द्रविड़ और अन्य सीनियर खिलाड़ी टी20 वर्ल्ड कप की संभावित टीम में नहीं थे और इस निर्णय के सूत्रधार ख़ुद द्रविड़ ही बने थे।
अब जब भारत 17 वर्षों का सूखा समाप्त करने के इरादे से आया था तब यह द्रविड़ के कोचिंग कार्यकाल का अंतिम टूर्नामेंट था। भारत को उसी जगह से यह ट्रॉफ़ी जीतनी थी, जहां भारत द्रविड़ की कप्तानी में पहले राउंड में बाहर हो गया था। ट्रॉफ़ी भी उसी टीम को हराकर हासिल करनी थी जिसके ख़िलाफ़ भारत ने अपना पहला टी20 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला था और तत्कालीन कप्तान द्रविड़ चोटिल होने के चलते उस मैच के लिए उपलब्ध नहीं थे। और जिस मैदान पर ख़िताबी जंग का फ़ैसला होने वाला था उस मैदान से भी बतौर खिलाड़ी द्रविड़ के लिए अधिक सुनहरी यादें नहीं जुड़ी हुई थीं।
बतौर कप्तान द्रविड़ ने वेस्टइंडीज़ में ही भारत को 35 वर्षों बाद टेस्ट सीरीज़ में जीत भी दिलाई थी और जिस टीम के ख़िलाफ़ भारत को जीत दर्ज कर ट्रॉफ़ी का सूखा समाप्त करना था उसी के देश में पहला टेस्ट मैच जीतने वाले भारतीय कप्तान भी द्रविड़ ही थे। लेकिन बतौर कप्तान द्रविड़ को यह जीत एक ऐसे प्रारूप में हासिल हुई थी जिसका वजूद अपने आप में टी20 क्रिकेट के स्वरूप से एकदम विपरीत है। ख़ुद द्रविड़ जिस शैली के खिलाड़ी थे उनकी अगुवाई में क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप का वर्ल्ड कप जीतना अपने आप में उनकी इस पेशेवर यात्रा के एक फ़ुल सर्कल से कम नहीं है।
हालांकि ख़ुद भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने फ़ाइनल के बाद पोस्ट मैच प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि उन्हें इस बात में विश्वास है कि चीज़ें पहले से तय होती हैं लेकिन उसे हासिल करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। शायद द्रविड़ भी जब भाग्य और श्रेय से ख़ुद को दूर रखने का प्रयास करते हैं तब उनके भीतर मेहनत को सर्वोपरि मानने का भाव ही छुपा होता है।
रोहित ने कहा , "मैं विश्वास करता हूं कि जो लिखा है वो होने वाला है। मुझे लगता है यह लिखा था। लेकिन ज़ाहिर तौर पर मैच से पहले तो यह नहीं पता था कि यह पहले से लिखा हुआ है। यही तो गेम है, नहीं तो हम लोग आराम से यह सोचकर आते कि चलो यह लिखा हुआ है।"
द्रविड़ रिडेंप्शन में विश्वास नहीं रखते, उन्हें किसी तरह की लीगेसी की अवधारणा में भी विश्वास नहीं है। वह भाग्य से अधिक मेहनत के बल पर किसी चीज़ को हासिल करने में विश्वास रखते हैं। ऐसा भी प्रतीत होता है कि उन्हें व्यक्ति पूजा में भी विश्वास नहीं है। हार की ज़िम्मेदारी लेना और श्रेय की होड़ में ख़ुद को सबसे पीछे कर देना द्रविड़ के मूल स्वभाव का हिस्सा रहा है।
ट्रॉफ़ी थामे जीत का जश्न मनाते द्रविड़•Getty Images
द्रविड़ जब एक खिलाड़ी थे तब 22 ग़ज़ की पट्टी पर उन्हें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने वाला बल्लेबाज़ माना जाता था। एक टीवी कमर्शियल में द्रविड़ को 'इंदिरानगर का गुंडा' दर्शाने से पहले ख़ुद कंपनी ने यह स्वीकारा था कि भावनाओं का अतिरेक द्रविड़ के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं है। हालांकि ट्रॉफ़ी हाथ में आने के बाद ख़ुद द्रविड़ अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाए। उनके चेहरे का हाव भाव, जोश किसी भी अन्य भारतीय खिलाड़ी से कमतर नज़र नहीं आ रहा था। द्रविड़ का उत्साह यह बता रहा था कि वो इस ट्रॉफ़ी को कितनी बुरी तरह से चाहते रहे होंगे, जो बतौर खिलाड़ी उनके हिस्से नहीं आ पाई थी।
नवनीत झा ESPNcricinfo में कंसल्टेंट सब एडिटर हैं।