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रफ़्तार की चाहत ने क्रांति गौड़ को छोटे से गांव से यूपी वॉरियर्ज़ तक पहुंचाया

मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके से आने वाली इस तेज़ गेंदबाज़ी ऑलराउंडर ने हर मौके़ को भुनाया और अब WPL का हिस्सा बनने जा रही हैं

Kranti Goud in her UP Warriorz jersey, Februrary 2025

Kranti Goud के गांव वाले किसी लड़की के क्रिकेट खेलने से ख़ुश नहीं थे लेकिन उनके परिवार ने किसी की एक न सुनी  •  UP Warriorz

सात साल पहले मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बुंदेलखंड क्षेत्र के छोटे से कस्बे घुवारा में महिलाओं के लेदर गेंद से खेले जाने वाले क्रिकेट मैच में एक टीम को एक खिलाड़ी की कमी थी। तभी उन्होंने एक लड़की को मैदान के आसपास छड़ी लिए घूमते देखा और उससे पूछा कि क्या वह खेलना चाहेगी। वह 14 साल की लड़की बचपन से टेनिस बॉल क्रिकेट खेलती आ रही थी और क्रिकेट के प्रति इतनी जुनूनी थी कि परीक्षा के दौरान भी डांट खाने की परवाह किए बिना खेलती थी।
लेकिन अब तक उसने सिर्फ़ टेनिस बॉल से लड़कों के साथ क्रिकेट खेला था। उसके पड़ोसियों और परिवार के जानने वालों को यह पसंद नहीं था, क्योंकि वे मानते थे कि गांव की लड़कियों के लिए क्रिकेट नहीं है। लेकिन न तो उस लड़की को और न ही उसके परिवार को इसकी परवाह थी। उसने बिना कोई मौका गंवाए अपने पहले लेदर की गेंद वाले मैच में हिस्सा लिया, बल्ले और गेंद से शानदार प्रदर्शन किया और प्लेयर ऑफ़ द मैच का पुरस्कार भी जीता।
21 वर्षीय क्रांति गौड़ अब एक तेज़ गेंदबाज़ी ऑलराउंडर हैं, जिन्होंने WPL 2025 के लिए UP वॉरियरज़ टीम में अपनी जगह बनाई है।
जब निलामी चल रहा था, तब गौड़ उस समय चंडीगढ़ में सीनियर विमेंस वनडे ट्रॉफ़ी खेल रही थीं और अपने मध्य प्रदेश की टीम के साथियों के साथ WPL 2025 की नीलामी देख रही थीं। एक दिन पहले ही उन्होंने छत्तीसगढ़ के ख़िलाफ़ 24 रन देकर 3 विकेट लिए थे, लेकिन नीलामी को लेकर उनकी उम्मीदें ज़्यादा नहीं थीं। 2024 में वह मुंबई इंडियंस की नेट गेंदबाज़ रही थीं और WPL का माहौल उन्हें बेहद पसंद आया था। जब उनका नाम अनकैप्ड खिलाड़ियों की सूची में आया, तो उन्हें उम्मीद नहीं थी कि कोई उन्हें ख़रीदेगा, लेकिन UP वॉरियरज़ ने उन्हें उनके बेस प्राइस 10 लाख रुपये में अपनी टीम में शामिल कर लिया।
गौड़ उस पल को याद करते हुए कहती हैं, "जब UP वॉरियरज़ ने मेरा नाम लिया, तो मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैंने तुरंत अपने परिवार को फ़ोन किया और अपने सबसे बड़े भाई मयंक सिंह से बात की।"
(क्रांति अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं--तीन भाई और तीन बहनें।) "वह नीलामी देख रहे थे और इसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पहले तो वह बहुत भावुक हो गए और हम ठीक से बात भी नहीं कर पाए। मैंने थोड़ी देर बाद फिर से फ़ोन किया, तब वह रोने लगे और मैं भी खु़द को रोक नहीं पाई।
"गांव में लोग कहते थे कि लड़की है, इसे क्रिकेट मत खेलने दो। लेकिन मेरे भाई ने किसी की नहीं सुनी, उन्होंने मुझे पूरा समर्थन दिया। परिवार ने भी मेरा साथ दिया और इसी वजह से मैं आज यहां तक पहुंची हूं।"
"नीलामी में चुने जाने के बाद मेरे दिमाग़ में सबसे पहली बात यही आई कि मैं सीनियर वनडे टूर्नामेंट में अच्छा कर रही थी, तो बस उसी फ़ॉर्म को WPL में भी जारी रखना है। साथ ही मैं भारतीय खिलाड़ियों से मिलने और उनके साथ खेलने को लेकर भी काफ़ी उत्साहित हूं।"
अपना पहला लेदर बॉल मैच खेलने के बाद, क्रांति गौड़ टीकमगढ़ जिले के जतारा कस्बे में एक और मैच खेलने गईं, जो लगभग 70 किमी दूर था। वहां भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। वहीं पर छतरपुर ज़िला क्रिकेट एसोसिएशन (CDCA) के सचिव और सागर डिवीज़न के कोच राजीव बिलथरे की सबसे पहले उनकी प्रतिभा पर नज़र पड़ी। वह साई क्रिकेट अकादमी चलाते हैं।
राजीव कहते हैं, "वह तेज़, फुर्तीली और बेहद एथलेटिक थीं। मुझे लगा कि वह आगे अच्छा कर सकती हैं, इसलिए मैंने उनके पिता से कहा कि उन्हें मेरे पास छतरपुर में छोड़ दें। मैंने उनसे कहा कि मैं उनकी बेटी को एक अच्छा खिलाड़ी बनाऊंगा। उनके पिता ने मुझसे कहा, 'हम अपनी बेटी आपको सौंप रहे हैं। आपको ही इसका भविष्य बनाना है।' यह पूरी तरह से उनकी मेहनत और प्रतिभा का नतीजा है कि वह आज यहां तक पहुंची हैं। मैं बस जो कर सकता था, वह किया। उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत मज़बूत नहीं था। इसलिए मैंने उनकी थोड़ी मदद की--किट, ड्रेस या बल्ले के मामले में जो भी मदद हो सकती थी, वह मैंने किया।"
भारत में ज़्यादातर युवा क्रिकेट का बल्ला ही उठाते हैं। बल्लेबाज़ हमेशा से जनता की कल्पना पर राज करते आए हैं--सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, मिताली राज, विराट कोहली, हरमनप्रीत कौर, स्मृति मांधना। फिर क्रांति ने तेज़ गेंदबाज़ी को कैसे चुना?
वह हंसते हुए कहती है, "ये बस हो गया। जब मैंने टेनिस बॉल से खेलना शुरू किया, तो देखा कि सभी दौड़कर मध्यम गति की गेंदबाज़ी कर रहे थे। मुझे तब यह भी नहीं पता था कि स्पिन गेंदबाज़ भी होते हैं। टेनिस बॉल क्रिकेट में स्पिनर कहां होते हैं? मेरे भाई ने भी कहा कि मुझे मध्यम गति की गेंदबाज़ी करनी चाहिए, तो मैंने वही किया। जब मैं (राजीव बिलथरे की) अकादमी में आई, तो देखा कि वहां ज़्यादा मध्यम गति के गेंदबाज़ नहीं थे। वहां सिर्फ़ एक ही ऐसी गेंदबाज़ थीं - सुषमा विश्वकर्मा, जो मेरी दोस्त बन गईं। उन्होंने भी मुझे तेज़ गेंदबाज़ी जारी रखने को कहा, और उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।"
इसी दौरान, जब 2017 में भारतीय महिला टीम ने वनडे वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में जगह बनाई, तब मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने अंडर-16 महिला क्रिकेट टूर्नामेंट शुरू किया। पहले ज़िला स्तर पर टीमों के बीच मुकाबले हुए, जिनमें से राज्य टीम के लिए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का चयन किया गया। सागर डिवीज़न में सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़ और निवाड़ी जिले आते हैं, के क्रिकेट ऑपरेशन्स मैनेजर सत्यम त्रिपाठी ने बिलथरे की मदद से महिला टीम बनाने का लक्ष्य रखा। उन्होंने विभिन्न स्कूलों में जाकर जागरूकता अभियान चलाया, माता-पिता से संपर्क किया और 40 से ज़्यादा लड़कियों को अकादमी तक लाने में सफल रहे, जिनमें से 15 को सागर डिवीज़न के लिए चुना गया।
त्रिपाठी बताते हैं, "हमने अंतर-जिला अंडर-16 टूर्नामेंट आयोजित किया, जिसमें क्रांति ने छतरपुर ज़िले से खेला। वह टीम की कप्तान थीं और हर विभाग में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसके बाद हमने उन्हें सागर डिवीज़न का कप्तान बनाया, और 2018-19 के अंडर-16 टूर्नामेंट में, जो एमपीसीए ने आयोजित किया था, हमारी टीम उपविजेता बनी। आमतौर पर इंदौर, ग्वालियर और भोपाल की टीमें ही ज़्यादा हावी रहती थीं, इसलिए सागर डिवीज़न के लिए टूर्नामेंट में एक-दो जीत भी बड़ी बात होती थी। लेकिन क्रांति ने हमारी टीम को उपविजेता तक पहुंचाया--भोपाल चैंपियन बना--और वहीं से उनके करियर की असली शुरुआत हुई।"
गौड़ के पास हमेशा से अच्छी गति थी। उनकी दुबली-पतली काया उन्हें तेज़ दौड़ने और गति से गेंद फेंकने में मदद करती थी। टेनिस बॉल क्रिकेट में उनकी गेंदों में जो धार होती थी, वह बल्लेबाज़ों को चौंका देती थी। लेदर बॉल से वह दोनों ओर स्विंग करा सकती हैं। इस सीज़न के सीनियर महिला वनडे ट्रॉफ़ी फ़ाइनल में भी उन्होंने यह कौशल दिखाया। उन्होंने फ़ाइनल में 25 रन देकर 4 विकेट झटके, जिसमें भारतीय विकेटकीपर ऋचा घोष को बोल्ड करना भी शामिल था। इस प्रदर्शन की बदौलत मध्य प्रदेश ने पहली बार यह ट्रॉफ़ी जीती।
राजीव कहते हैं, "उनके पास कम उम्र में ही वह गति थी, जो उस समय की ज़्यादातर लड़कियों में नहीं थी। जब वह दौड़ती थीं, तो लड़कों के बराबर की स्पीड रहती थी। मुझे तभी लग गया था कि वह असाधारण हैं। इसलिए हमने उनकी फ़िटनेस पर ध्यान दिया और गेंदबाज़ी ड्रिल्स करवाईं। वह बहुत मेहनती हैं। अगर वह मैदान में तीन घंटे हैं, तो हर मिनट कुछ न कुछ काम करेंगी, कभी सुस्ताने या गपशप करने में समय बर्बाद नहीं करेंगी।"
सीडीसीए और सागर डिवीज़न में, बिलथरे ने हमेशा खिलाड़ियों को हरफ़नमौला बनाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने गौड़ में एक अच्छे बल्लेबाज़ की झलक देखी--उनके पास ताक़त थी और वह स्पिन के ख़िलाफ़ तेज़ी से अपने पैरों का इस्तेमाल कर सकती थीं। उन्होंने उनकी तकनीक को सुधारने में मदद की और "वी" क्षेत्र में शॉट खेलने की अहमियत सिखाई। बिलथरे की नियमित ट्रेनिंग के कारण गौड़ ने अपनी बल्लेबाज़ी में काफ़ी सुधार किया। लेकिन एक कमी थी--धैर्य।
राजीव कहते हैं, "पहले वह हर गेंद पर बड़ा शॉट मारना चाहती थीं। मैंने उनसे धैर्य पर काम करने के लिए कहा और मेडिटेशन करवाया। मैचों के दौरान हमने उनसे कहा कि हर गेंद के बाद डगआउट की तरफ़ देखें, और हम उन्हें इशारों से बताते थे कि संयम रखना है। धीरे-धीरे उन्होंने हमारे कहे अनुसार खेलना शुरू किया और यह उनकी आदत बन गई। जब तक कोई बल्लेबाज़ यह मानसिकता विकसित नहीं करता, तब तक वह अच्छी बल्लेबाज़ी नहीं कर सकता। अब यह उनका स्वाभाविक खेल बन गया है--हमें अब उन्हें बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि किस परिस्थिति में कैसे खेलना है।"
इसका एक बेहतरीन उदाहरण पिछले सीज़न के अंडर-23 महिला वनडे ट्रॉफ़ी क्वार्टर-फ़ाइनल में दिखा। बंगाल के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश की टीम 35वें ओवर में 106 पर 5 विकेट खो चुकी थी। इसके बाद उन्होंने 42 गेंदों में संयमित 46 रन बनाए और टीम का स्कोर 182/9 तक पहुंचाया। यह स्कोर जीत के लिए काफ़ी नहीं था, लेकिन यह पारी गौड़ के लिए गर्व का क्षण रही।
वह हंसते हुए कहती हैं, "मेरा स्वाभाविक खेल T20 के अंदाज़ में बल्लेबाज़ी करना है। भले ही मैं वनडे खेल रही हूं। जब मैं 50 ओवर के मैच में बल्लेबाज़ी करने जाती हूं, तो मेरी टीम बस यही उम्मीद करती है कि मैं कोई अजीब शॉट न खेलूं। पिछले साल अंडर-23 वनडे क्वार्टर-फ़ाइनल में हमारी टीम जल्दी विकेट खो चुकी थी, तो मुझे लगा कि कुछ अलग करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि बहुत सारे ओवर बचे थे। मैंने इंतज़ार किया, लेकिन जो गेंद स्लॉट में आई, उसे ज़रूर मारा।"
आज भी हर मैच से पहले और बाद में गौड़ और राजीव बातचीत करते हैं। वहीं वॉरियर्ज़ में सायमा ठाकोर उनकी मार्गदर्शक बनी हैं, जो उन्हें मैच सिमुलेशन और अलग-अलग परिस्थितियों में गेंदबाज़ी करने की बारीकियां सिखा रही हैं।
पूरे देश में WPL का एक बड़ा असर यह हुआ है कि ज़्यादा लड़कियां प्रोफे़शनल क्रिकेट अकादमी से जुड़ने लगी हैं। राजीव की अकादमी में भी ऐसा ही बदलाव आया है, और वह इसका श्रेय गौड़ की सफलता को देते हैं। "क्रांति के आगे बढ़ने के बाद बदलाव साफ़ दिखा है। वह स्थानीय खिलाड़ी हैं, हर कोई उन्हें जानता है। अब लोग यह मानने लगे हैं कि अगर वह मेरी अकादमी से निकलकर राज्य और WPL की टीम तक पहुंच सकती हैं, तो वे भी कोशिश कर सकते हैं।"
गौड़ की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि गांवों की लड़कियां भी क्रिकेट खेल सकती हैं और उन्हें खेलना भी चाहिए।