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अंडर-19 विश्व कप से जुड़ी भारतीय खिलाड़ियों की यादें

मंदीप सिंह, श्रीवत्स गोस्वामी, रीतिंदर सोढ़ी, हर्षल पटेल और इशान पोरेल से बातचीत

The Indian team celebrates winning the Under-19 World Cup final v South Africa in Malaysia

2008 अंडर-19 विश्व कप ट्रॉफ़ी के साथ युवा टीम इंडिया  •  Stanley Chou/Getty Images

22 साल पहले श्रीलंका को हराकर भारत पहली बार अंडर-19 विश्व चैंपियन बना था। तब से वह छह बार इस प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुंच चुका है और उसने चार बार ट्रॉफ़ी जीती है। भारत इस टूर्नामेंट की अब तक की सबसे सफल टीम है।
विराट कोहली, रोहित शर्मा, चेतेश्वर पुजारा, रवींद्र जाडेजा, इशांत शर्मा, केएल राहुल अंडर-19 विश्व कप के ही उपज हैं। हालांकि रीतिंदर सोढ़ी, मंदीप सिंह कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हैं, जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे लेकिन उतने सफल नहीं हुए। वहीं 2012 अंडर-19 विश्व कप विजेता टीम के कप्तान उन्मुक्त चंद तो अब अमेरिका के लिए खेलने को निकल चुके हैं।

आपको कब लगा कि अंडर-19 विश्व कप उच्च स्तर के क्रिकेट तक चढ़ने की पहली सीढ़ी है?

रीतिंदर सोढ़ी, 2000 टीम: जूनियर क्रिकेटर के रूप में आप सबसे पहले अपने राज्य की रणजी टीम में आना चाहते हैं। इसके बाद आप दुलीप ट्रॉफ़ी, ईरानी कप और फिर भारतीय टीम में चयनित होना चाहते हैं। अब की तरह पहले इंडिया ए के अधिक मैच या दौरे नहीं हुआ करते थे। इसलिए हमारा लक्ष्य था कि जूनियर क्रिकेट में बेहतर करो क्योंकि यही सीनियर टीम में चढ़ने की सीढ़ी है।
जब मैंने 1998 में अंडर-19 विश्व कप खेला था, तो यह लगभग 10 साल के बाद हो रहा था। इसलिए हम इसका उतना महत्व नहीं समझ रहे थे। हालांकि जब हम सेमीफ़ाइनल में पहुंचे, तब हमें एहसास हुआ कि कुछ बड़ा हो चुका है। हालांकि फ़ाइनल जीतने के बाद जब हम घर पहुंचे तब हमें पूरी तरह मालूम चला कि हमने क्या कर दिखाया है। रणजी की बात तो भूल जाइए, हमें सीधे भारतीय टीम में लेने की बात चलने लगी और जलदी यह हुआ भी जब युवराज सिंह ने टीम इंडिया में जगह बनाई। दो महीने बाद मैं भी भारतीय ड्रेसिंग रूम में था और फिर मोहम्मद कैफ़ भी टीम में आ गए।
"मैंने एक बार पापा से पूछा कि आप कब कार ले रहे हैं, उन्होंने कहा कि जब तुम भारत के लिए खेलोगे"
रीतिंदर सोढ़ी
श्रीवत्स गोस्वामी, 2008 टीम: मैं उस समय तक रणजी ट्रॉफ़ी का महत्व नहीं जानता था। मुझे लगा कि अगर मैं एक बार अंडर-19 खेल लिया तो मैं जल्द ही राष्ट्रीय टीम में आ जाऊंगा। यह मेरे लिए एक शॉर्टकट की तरह था। 18-19 साल की उम्र में लाइव टीवी पर आना रोमांचित करने वाला था।
मंदीप सिंह, 2010 टीम: मैंने 2006-07 में अंडर-15 क्रिकेटरों को मिलने वाला सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर का ख़िताब (एमए चिदंबरम ट्रॉफ़ी) जीता था। जब मैं 16-17 साल का था तब ही मुझे 2008 की अंडर-19 विश्व कप टीम के साथ कुआलालमपुर भेज दिया गया, ताकि मैं अगले विश्व कप के लिए कुछ अनुभव हासिल कर सकूं। विराट की टीम को उस समय टूर्नामेंट जीतते हुए देखना एक अलग ही अनुभव था। मैंने देखा कि कैसे टीम तैयारी कर रही हैं, लोग तैयारी को लेकर कितना सजग हैं आदि। इससे मुझे प्रेरणा मिली और मैं अगले अंडर-19 विश्व कप टीम में था।

एक अंडर-19 क्रिकेटर के रूप में आपके क्या सपने थे?

सोढ़ी: मेरे पिता का संघर्ष मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा थी। वह स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (एसएआई) में कोच थे और पंजाब के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी खेल चुके थे। दुर्भाग्य से वह कभी भारत के लिए नहीं खेल सके।
मैं 12 साल का था और मैं उनके बजाज चेतक स्कूटर से सोलन से पटियाला लौट रहा था। मैं आगे खड़ा था, जबकि मेरी बहन मेरे पिता और मां के बीच में बैठी थी। मैंने अपने पापा से पूछा कि वह कब कार ख़रीद रहे हैं? उन्होंने जवाब दिया कि जब मैं इंडिया के लिए खेलूंगा। उस घटना के बाद से मैं ज़रूर भारत के लिए खेलना चाहता था। मैं लगातार तीन साल तक दिन में तीन बार ट्रेनिंग करता था और रात में पापा मुझे बल्लेबाज़ी का अभ्यास कराते थे।
मैं 1998 में लोम्बार्ड जूनियर अंडर-15 विश्व कप का भी सदस्य था। इसके बाद मैं 2000 में अंडर-19 विश्व कप खेला। यह मेरे लिए बहुत विशेष था, क्योंकि हमने पहली अंडर-19 विश्व कप ट्रॉफ़ी जीती थी और फ़ाइनल में मैं प्लेयर ऑफ़ द मैच था।
"मुझे लगा चूंकि मैं अंडर-19 विश्व कप खेल कर आ रहा हूं तो मैं बंगाल के लिए ऋद्धिमान साहा से भी पहले विकेटकीपर विकल्प बनूंगा"
श्रीवत्स गोस्वामी
गोस्वामी: मैं डायरी लिखता था। उसमें मैंने लिखा था कि जब तक मैं 23 साल का होऊंगा, तब तक मैं भारत के लिए खेलने लगूंगा। राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (एनसीए) में मैंने पूर्व खिलाड़ियों के साथ काफ़ी समय बिताया। मुझे लगा कि मैं बस एक ही कदम दूर हूं और एक अच्छा विश्व कप मेरा काम आसान कर सकता है। 17-18 साल की उम्र से ही मैं पढ़ाई से पीछा छुड़ाने लगा था और मैं क्रिकेट से बाहर कुछ सोचता भी नहीं था।
इशान पोरेल, 2018 टीम: मैं अपने माता-पिता को ग़लत साबित करना चाहता था, क्योंकि क्रिकेट से पहले मैं फ़ुटबॉल और वॉलीबॉल खेलता था। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं क्रिकेट के लिए इन दोनों खेलों को छोड़ रहा हूं, तो उन्होंने मुझे सफल होने की चुनौती दे दी।  एनसीए में अंडर-19 क्रिकेटरों को पूर्व भारतीय खिलाड़ियों द्वारा कुछ महत्वपूर्ण अनुभव बांटे जाते हैं। हालांकि यह यात्रा आसान नहीं थी।

जूनियर से सीनियर क्रिकेट में आना?

गोस्वामी: अंडर-19 विश्व कप के दो साल बाद मुझे लगा कि यह उतना भी आसान नहीं है। विश्व कप के तुरंत बाद आईपीएल आ गया और हम पार्टियों में जाने लगे। हमें इतने पैसे मिले, जो हमने कभी पहले देखे भी नहीं थे। मुझे इसे समझने में थोड़ा वक़्त लगा और जब तक मैं कुछ समझा तब तक मैं 22 साल का हो चुका था।
जब मैं अंडर-19 विश्व कप खेला, तो मुझे लगा कि अब मैं बंगाल के लिए पहला विकेटकीपिंग विकल्प होऊंगा। मुझे लगा कि मैं जो भी छू रहा हूं, वह अब सोना है। सच्चाई का एहसास होने में मुझे कुछ समय लगा।
"काश कोई मुझे दबाव नहीं लेने और अपने खेल का आनंद लेने की सलाह देता। मैं आज के युवाओं को यही सलाह देना चाहूंगा।"
हर्षल पटेल
हर्षल पटेल, 2010 टीम: मैं दिमाग में हमेशा अपने आप को साबित करने का दबाव लेकर चलता था। एक समय यह दबाव इतना बढ़ गया कि मैंने अपने क्रिकेट का मज़ा लेना ही बंद कर दिया। काश कोई मुझे ऐसा नहीं करने की सलाह देता। मैं आज के युवाओं को यही सलाह दूंगा कि वह अपनी उम्र की हिसाब से ज़िंदगी के मज़े ले, अधिक दबाव नहीं लें, ग़लतियां करें लेकिन उनसे सीखें भी।

शशांक किशोर ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं, अनुवाद ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो हिंदी के दया सागर ने किया है