Zeeshan Ansari को SRH में लगातार मिल रहे मौक़े • BCCI
मोहम्मद नईम अंसारी के घर इस साल की ईद दोहरी ख़ुशियां लेकर आईं। उनकी ईद की सेवईयां और मीठी हो गईं क्योंकि ईद से ठीक एक शाम पहले उनका बेटा ज़ीशान अंसारी कई सालों के इंतज़ार के बाद पहली बार कोई IPL मैच खेलने जा रहा था। जैसे-जैसे नईम का परिवार अंतिम रोज़े का इफ़्तार कर रहा था, वैसे-वैसे उनका बेटा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बल्लेबाज़ों को अपनी फ़िरकी में फंसाकर पवेलियन भेजता जा रहा था।
देखते-देखते लखनऊ के चौधरी टोला स्थित नईम के छोटे और आधे-अधूरे बने घर के बाहर मुहल्ले और गली के लोगों की भीड़ लगने लगी। जो लोग, नईम को बेटे को क्रिकेट खिलाने के लिए ताना देते थे, उसे 'टाइम वेस्ट, मन बढ़ाना, ऊंचे सपने देखना' कहते थे, अब वे लोग ही नईम और उनके परिवार के लोगों को गले लगकर बधाई दे रहे थे। यह नईम के दो दशकों की संघर्ष की दूसरी जीत थी।
नईम के इस संघर्ष की शुरुआत 2000 के दशक के आख़िरी सालों में हुई थी। तीन भाईयों के इस संयुक्त परिवार में उनके नई पीढ़ी की पौध आने लगी थी और नईम नहीं चाहते थे कि उनकी नई पीढ़ी भी उनके और उनके भाईयों की ही तरह अपने पिता की दर्जी की दुकान को संभालें।
उस समय लखनऊ के आईटी चौराहा स्थित उनके इस सिलाई की दुकान पर हर शाम कई ऐसे लोगों की बैठकी होती थी, जो खेलों से जुड़े थे और खेलों के कारण ही उनकी सरकारी नौकरी लगी थी। नईम को लगा कि अगर उनके घर का कोई भी बेटा या बेटी किसी भी खेल में आगे बढ़ गया तो उनके घर भी एक सरकारी नौकरी आ जाएगी, जिससे उनके संयुक्त परिवार की ज़िंदगी बेहतर हो सकती है।
इसी के कारण नईम ने अपने उन दोस्तों की मदद से अपने घर के तीन बेटों और एक बेटी को घर के पास ही स्थित लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी (LDA) के सरकारी स्पोर्ट्स एकेडमी में दाखिला कराया, जहां क्रिकेट, बास्केटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन सहित कई खेलों के गुर शुरुआती स्तर पर सिखाए जाते हैं। यहीं से ज़ीशान का उभार हुआ और अब वह IPL 2025 में सनराइज़र्स हैदराबाद (SRH) के मुख्य स्पिनर हैं।
ज़ीशान ने क्रिकेट खेलना चार-पांच साल की उम्र में शुरू कर दिया था और वह अपने घर से सटे छोटी सी गली में मुहल्ले के दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलते थे। मुहल्ले के अन्य लड़कों के विपरीत उनकी रूचि बल्लेबाज़ी से अधिक गेंदबाज़ी में थी क्योंकि शुरुआती समझ आते ही उन्हें लग गया था कि क्रिकेट जैसे खेल में बल्लेबाज़ बनना उनके साधारण से परिवार के लिए महंगा साबित हो सकता है। गली क्रिकेट में भी वह हमेशा से ही उंगलियों और कलाईयों के सहारे गेंद को नचाने की कोशिश करते रहते थे।
LDA एकेडमी में ज़ीशान के बचपन के कोच गोपाल सिंह बताते हैं, "वह मेरे पास 11-12 साल की उम्र में आया था। इससे पहले वह चौक (लखनऊ स्थित एक इलाका) स्थित किसी और एकेडमी में भी एक साल तक गया था, हालांकि वह उसके घर से थोड़ा दूर था। भले ही उसकी गेंद बल्लेबाज़ तक नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन वह शुरू से ही लेग स्पिन फेंकता था। कुछ बच्चे ऐसे आते हैं, जिनके बॉडी लैग्वेज से ही लग जाता है कि वह आगे चलकर अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं। जब वह प्रैक्टिस करता था, दौड़ता था, टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता था, तो उसमें भी वह बात दिखती थी। हालांकि दो-तीन साल के कड़े अभ्यास के बाद ही मुझे पूरी तरह से विश्वास हो पाया कि वह एक अच्छा लेग स्पिनर बन सकता है।"
ज़ीशान रोज़ सुबह उठते और एकडेमी चले जाते और वहां दिन भर बल्लेबाज़ों को पकड़-पकड़कर उन पर गेंदबाज़ी किया करते थे। एक बल्लेबाज़ थक जाता तो दूसरे बल्लेबाज़ को बुलाते और यह सिलसिला चलता रहता था। घर आते, तो वहां भी उनके चाचा मोहम्मद गयास अंसारी उनके अभ्यास में मदद करते और उनके लिए बगल की गली में बल्लेबाज़ बनते। संयुक्त परिवार में गयास को ही ज़ीशान को एकेडमी से घर लाने, एकेडमी ले जाने और घर पर अतिरिक्त अभ्यास करने का ज़िम्मा मिला था क्योंकि गयास भी अपनी जवानी के दिनों में घूम-घूमकर ख़ूब टेनिस बॉल क्रिकेट खेलते थे। इसके लिए गयास को दुकान के काम से अतिरिक्त समय और छुट्टी भी मिलती थी।
कई बार ऐसा भी हुआ कि ज़ीशान के क्रिकेट के जूते (स्पाइक्स) फट जाते तो उन्हें वह बार-बार सिलाकर प्रयोग करते ताकि उनके परिवार पर अतिरिक्त बोझ ना हो। हालांकि कोच गोपाल ने कभी भी ज़ीशान और उनके परिवार के अन्य बच्चों से कोई फ़ीस नहीं ली, लेकिन ज़ीशान के क्रिकेट के अन्य ख़र्चों के लिए नईम को कई बार अपने दोस्तों से उधार भी लेना पड़ा, लेकिन एक स्वाभिमान पिता की तरह उन्होंने इसे समय से वापस भी लौटा दिया।
बात 2014 की है। उस समय ज़ीशान 15 साल के हो चुके थे और क्लब व जिला स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उन्होंने राज्य की क्रिकेट टीम के लिए अंडर-16 का ट्रायल दिया। उनका चयन अंडर-16 टीम के लिए तो नहीं हुआ, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह अंडर-19 के ट्रायल में सफल हुए और उन्होंने उसी सीज़न उत्तर प्रदेश के लिए अंडर-19 और अंडर-23 क्रिकेट दोनों में डेब्यू किया।
अंडर-19 के कूच बेहार ट्रॉफ़ी (2014-15) में उन्होंने पूरे देश में सर्वाधिक 40 विकेट लिए, जबकि कर्नल सीके नायुडू अंडर-23 टूर्नामेंट में भी 15-वर्षीय ज़ीशान को 13.44 की बेहतरीन औसत से तीन पंजों सहित कुल 18 विकेट मिला।
ज़ीशान को उनके इस प्रदर्शन का ईनाम मिला और वह इशान किशन की अगुवाई वाली 2016 के अंडर-19 विश्व कप में भारतीय टीम के सदस्य थे। यह ज़ीशान के पिता नईम के संघर्षों की पहली जीत थी।
हालांकि इस विश्व कप में मयंक डागर, वॉशिंगटन सुंदर और महिपाल लोमरोर जैसे स्पिन ऑलराउंडरों के कारण ज़ीशान को सिर्फ़ दो मैचों में खेलने का मौक़ा मिला, लेकिन जब वह घर वापस आए तो उन्होंने सबसे पहले इस विश्व कप से मिले पैसों से अपने छत टपकते घर के आधे हिस्से का मरम्मत कराया ताकि उनके संयुक्त परिवार के लोग बारिश वाली रातों में भी सुकून की नींद सो सके।
ख़ैर, विश्व कप के बाद ज़ीशान ने अंडर-23 सीके नायुडू ट्रॉफ़ी 2016-17 में UP की तरफ़ से सर्वाधिक 30 विकेट लिए और उनका चयन अगले साल रणजी ट्रॉफ़ी के लिए हो गया। रेलवे के ख़िलाफ़ सुरेश रैना की कप्तानी में डेब्यू करते हुए ज़ीशान ने दोनों पारियों में तीन-तीन विकेट लिए, लेकिन जब UP ने अगला मैच खेला तो ज़ीशान का नाम एकादश में नहीं था।
2017 से 2020 के दौरान ज़ीशान को सिर्फ़ पांच रणजी ट्रॉफ़ी मैच खेलने को मिला, जिसमें उन्होंने 17 विकेट लिए और एक मैच में बल्ले के साथ 76 का भी स्कोर किया। सीमित ओवर क्रिकेट में अभी भी वह उत्तर प्रदेश की तरफ़ से सिर्फ़ एक मैच खेले हैं।
नईम बताते हैं, "वह एक बुरा दौर था। अंडर-19 विश्व कप में इंडिया के लिए खेलने के बाद हमें लगा था कि हमारे अच्छे दिन आ गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। उसको बहुत कम मौक़े मिल रहे थे, जबकि उसके साथ खेलने वाले ऋषभ पंत, इशान किशन, ख़लील अहमद, वॉशिंगटन सुंदर और सरफ़राज़ ख़ान जैसे खिलाड़ी इंडिया और IPL खेल रहे थे। इसलिए उसके साथ-साथ हम भी कई बार निराश हो जाते थे। हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमने उससे क्रिकेट छोड़ने के लिए कहा या उसने भी कभी हार मानी। वह हमेशा यही कहता था कि हमसे अच्छे लोग हैं, जो खेल रहे हैं, हमारा भी समय आएगा।"
गोपाल कहते हैं, "कई बार तो वह रो भी देता था। हम भी उदास हो जाते थे, लेकिन अपनी उदासी छोड़ उसको मोटिवेट करते थे। लेकिन उसकी एक बात सबसे अच्छी थी कि भले ही कितनी निराशा हो, वह दूसरे दिन सुबह मैदान पर अभ्यास के लिए खड़ा मिलता था। वह एक फ़ाइटर क्रिकेटर है और उसके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। क्रिकेट छोड़ देता तो क्या ही करता? उसके पिता भी हमेशा यही कहते थे कि 'अगर ये खेलेगा नहीं तो क्या करेगा? हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है और ना ही हमारे पास कुछ खोने को है।'"
इस दौरान ज़ीशान लगातार कार्पोरेट क्रिकेट, राज्य स्तरीय, ज़िला स्तरीय और लखनऊ के लोकल ए डिविज़न टूर्नामेंट्स में खेलते रहें, जहां पर उनके साथ अक्षदीप नाथ, विप्रज निगम और मोहम्मद सैफ़ जैसे खिलाड़ी खेलते थे। इसके अलावा वह बीच में 2023 में कलकत्ता लीग में भी खेलने गए। उनको पिछले साल मिज़ोरम की तरफ़ से एक प्रोफ़ेशनल के तौर पर घरेलू क्रिकेट खेलने का प्रस्ताव भी आया था, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को सम्मान सहित ठुकरा दिया।
ज़ीशान की ज़िंदगी में अहम मोड़ तब आया, जब वह उत्तर प्रदेश प्रीमियर लीग (UPPL) 2024 में 12 मैचों में सर्वाधिक 24 विकेटों के साथ पर्पल कैप के हक़दार बने और उनकी टीम मेरठ मारविक्स ने ख़िताब जीता। इसके बाद कई फ़्रैंचाइज़ी की नज़र ज़ीशान पर पड़ी और उन्होंने ज़ीशान को ट्रायल पर बुलाया। अंततः बड़ी नीलामी में ज़ीशान को सनराइज़र्स हैदराबाद (SRH) ने 40 लाख रूपये में ख़रीदा, जिसे ज़ीशान के पिता 'आठ साल बाद हुआ ख़ुदा का करिश्मा' मानते हैं। एक दार्शनिक के अंदाज़ में वह कहते हैं, "समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।" हालांकि उनको अब यह भी लगता है कि ज़ीशान का समय आ चुका है।
ऐडम ज़ैम्पा के चोटिल होने के बाद ज़ीशान अब SRH के मुख्य स्पिनर हैं। पहले मैच में ज़ेक फ़्रेज़र-मक्गर्क, फ़ाफ़ डु प्लेसी और केएल राहुल के विकेटों के साथ शानदार शुरूआत करने वाले ज़ीशान के लिए तीन मैच ऐसे भी गए, जहां पर उन्हें कोई विकेट नहीं मिला, लेकिन मुंबई इंडियंस (MI) के ख़िलाफ़ पिछले मैच में विल जैक्स का विकेट लेने के बाद उन्होंने वापसी के संकेत दिए हैं। अब चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के ख़िलाफ़ चेपॉक की मददग़ार पिच पर वह फिर से अपने फ़िरकी का जलवा बिखेरना चाहेंगे।
ख़ैर, इस बीच ख़ालिस ज़मीन पर बिछे हुए बिस्तर पर लेटी ज़ीशान की 90 वर्षीय दादी को ज़ीशान का इंतज़ार है। उन्हें नहीं पता कि उनका पोता क्या कर रहा है, लेकिन वह टीवी पर ज़ीशान को देखकर ज़रूर मुस्कुरा देती हैं। वहीं ज़ीशान के परिवार को IPL की इस सफलता के बाद भी कोई बड़ी चाहत नहीं है। वे अपनी गली वाले घर को छोड़कर लखनऊ के किसी बड़ी कॉलोनी में नहीं बसना चाहते हैं, वे बस इतना चाहते हैं कि ज़ीशान बाक़ी बचे घर की भी इस बार मरम्मत करा दे, जैसा उन्होंने अंडर-19 विश्व कप के बाद कराया था।
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं।dayasagar95