शहर के बीचों-बीच रेलवे स्टेशन के पास स्थित कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम पर जब आप पहुंचते हैं, तो लगता है कि आप किसी छोटे शहर के एक सिंगल थिएटर सिनेमा घर में पहुंच गए हैं। षट्कोण (Hexagon) के आकार में बने इस स्टेडियम को बाहर से देखने पर लगता ही नहीं है कि यह कोई स्टेडियम है। ना क्रिकेट से जुड़ी कोई होर्डिंग और ना ही दूर से दिखते फ़्लड-लाइट्स। बशर्ते स्टेडियम के प्रवेश द्वार पर एक होर्डिंग ज़रूर है, जिसमें स्थानीय सांसद और पूर्व में BCCI से जुड़े रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव में जीत मिलने की बधाई दी जा रही है।
पहले हॉकी का मैदान रह चुके इस स्टेडियम के अंदर घुसने पर एक गैलरी है, जो कुछ कार्यालयों और सचिन के ऐतिहासिक स्कोरकार्ड से होते हुए आपको मैदान तक ले जाती है। यह मैदान अंदर से भी षट्कोण आकार का बना हुआ है, जिसमें बस पवेलियन छोर की तरफ़ की कुछ VVIP सीटों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 20 हज़ार की क्षमता वाले इस स्टेडियम के सभी सीट सीमेंट से बनी सीढ़ियों के आकार की हैं। दोनों छोरों पर दो-दो छोटे आकार के चार फ़्लड-लाइट्स खड़े हैं, जिसे 1996 के वनडे विश्व कप के लिए बनवाया गया था।
MPCA के स्कोरर सुनील गुप्ता की आंखें तेंदुलकर के दोहरे शतक को याद करते हुए चमक जाती हैं। उनके मुताबिक़ जैसे यह कल की घटना हो, जब सचिन ने चार्ल लैंग्लवेल्ट की गेंद को हल्के हाथों से प्वाइंट की दिशा में खेल एक 'असंभव ऐतिहासिक कारनामा' किया था।
गुप्ता कहते हैं, "हम लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हमने कुछ ऐसा देख लिया है, जो उस समय वनडे क्रिकेट में लगभग असंभव था। यह मैच दुर्घटनावश 20 दिन पहले ही कानपुर से ग्वालियर को मिला था। हमारी पिच और मैदान तो तैयार था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के लिए और भी ढेर सारी तैयारियां चाहिए होती हैं। लेकिन हमारे एसोसिएशन ने बेहद ही कम समय में इन तैयारियों को पूरा कर लिया और उसके बाद जो हुआ, वह तो अब पूरी दुनिया जानती है।"
भाग्य पर विश्वास करने वाले गुप्ता दार्शिनक अंदाज़ में कहते हैं, "इसलिए कहा गया है कि दाने-दाने पर लिखा है, खाने वाले का नाम। हम लोगों के भाग्य में लिखा था 'भगवान' के दोहरे शतक को देखना और जब उन्होंने हवा में अपने हेल्मेट और बैट को लहराया, तो मेरे सहित कई लोगों की आंखों में आंसू थे। ये ख़ुशी के आंसू थे।"
तेंदुलकर के दोहरे शतक के इस मैच के अलावा ग्वालियर के इस पुराने स्टेडियम में कई ऐतिहासिक वनडे मैच हो चुके हैं, जिसमें 1996 विश्व कप का भारत-वेस्टइंडीज़ मैच, 2007 का भारत-पाकिस्तान मुक़ाबला, 2003 के विश्व कप फ़ाइनल हार के बाद भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच, 1997 का ऐतिहासिक भारत-केन्या मुक़ाबला, जब केन्या ने पहली बार किसी अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबले में भारत को हराया था और 1993 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ लगातार दो दिनों में हुआ दो वनडे मैच था। इसके अलावा 1996 के रणजी ट्रॉफ़ी फ़ाइनल का भी आयोजन इसी स्टेडियम में हुआ था, जो अब तक का एकमात्र डे-नाईट रणजी फ़ाइनल है।
मृदुभाषी गुप्ता मुस्कुराते हुए कहते हैं, "कई बार यह स्टेडियम संकट के समय BCCI के काम आया है। जब 1993 में दंगों के कारण भारत-इंग्लैंड पहला वनडे अहमदाबाद में रद्द हो गया था, तो इस मैदान पर लगातार दो दिनों में दो वनडे आयोजित किए गए थे। यह भारत का इकलौता ऐसा ग्राउंड है, जहां पर लगातार दिनों में दो वनडे मैच आयोजित हुए हों। इसके अलावा 2010 में जब कानपुर में तैयारियां पूरी नहीं होती दिखीं तो भी आनन-फ़ानन में हमें वनडे मैच दे दिया गया।"
"वहीं 1996 के विश्व कप के लिए जब हमारे पास उतना अधिक फ़ंड नहीं था, तब हमने चार की जगह तीन पाये (स्टैंड) पर अपेक्षाकृत छोटे फ़्लड-लाइट्स बनवाए, ताकि डे-नाईट मैच आयोजित किए जा सकें। यह दिखाता है कि हम ग्वालियर वाले हमेशा से क्रिकेट की अगुवानी के लिए तैयार रहते हैं," गुप्ता आगे कहते हैं।
एक समय यह स्टेडियम भारत का नियमित वनडे ग्राउंड हुआ करता था, जहां 90 और 2000 के दशक में हर दो या तीन साल पर एक मैच हो जाया करता था। लेकिन आधुनिक सुविधाओं के अभाव में 12 वनडे आयोजित करने वाला यह स्टेडियम धीरे-धीरे नेपथ्य में चला गया।
इसके अलावा यह स्टेडियम ग्वालियर नगर निगम का है, जिसे 25 साल के लिए ग्वालियर डिवीज़न क्रिकेट एसोसिएशन (GDCA) ने लीज़ पर लिया था, जो अगले साल 2025 में समाप्त हो रहा है। इसी कारण मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (MPCA) ने ग्वालियर में अपना ख़ुद का स्टेडियम बनाने का निर्णय लिया। पूर्व BCCI अध्यक्ष माधवराज सिंधिया के नाम पर बने इस नए स्टेडियम की नींव 2011 में पड़ी और 2024 में यह बनकर तैयार हुआ, जिसका उद्घाटन BCCI सचिव जय शाह और पूर्व भारतीय कप्तान कपिल देव ने किया।
ग्वालियर शहर के बाहरी छोर पर मुंबई-आगरा हाईवे बायपास के पास स्थित लगभग 30 एकड़ में बना नया स्टेडियम सभी आधुनिक सुविधाओं मसलन आधुनिक फ़्लड-लाइट्स, आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम, इनडोर ट्रेनिंग सुविधा, आधुनिक ड्रेसिंग रूम, अलग से अभ्यास मैदान, नौ क्रिकेट पिच, नए मशीनों से लैस जिम, टीवी ब्रॉडकास्ट कंट्रोल रूम, बंद और वातानुकूलित मीडिया सेंटर और नई तकनीकों से बने PVC के सीटों से लैस है।
पंजाब के मुल्लांपुर में बने स्टेडियम की तरह यह स्टेडियम भी अभी खुला है, जिसमें बाद में कैनोपी लगाया जाएगा। फ़िलहाल इस स्टेडियम की क्षमता 30 हज़ार है, जिसे MPCA द्वारा बाद में 50 हज़ार तक बढ़ाने की योजना है। यही कारण है कि स्क्वेयर बाउंड्री के दोनों तरफ़ से स्टेडियम के पिलर अभी भी खुले हैं, जिसे भविष्य में निर्माण कार्यों के लिए उपयोग किया जा सकेगा।
चारों तरफ़ से चंबल की पहाड़ियों से घिरे और लगभग 200 करोड़ की लागत से बने इस स्टेडियम में यह पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच होगा, जबकि यहां पर एक भी घरेलू मैच अब तक आयोजित नहीं हुए हैं। हालांकि इस साल के जून में इस मैदान पर मध्य प्रदेश प्रीमियर लीग का आयोजन हुआ था, जो कि राज्य का स्थानीय टी20 लीग है। इस दौरान कुल 12 मैच आयोजित हुए थे, जिसमें जमकर रन बरसे थे। भारत-बांग्लादेश के बीच होने वाले इस मुक़ाबले में भी जमकर रन बरसने की संभावना है।
हालांकि इस बीच शहर में धारा 163 भी लगा दी गई है, ताकि अधिकतम पांच लोग भी इकट्ठा होकर कोई प्रदर्शन ना कर सके। ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा के मिडिया रिपोर्ट्स के मद्देनज़र कानपुर के बाद इस मैच पर भी दक्षिणपंथी हिंदूवादी संगठनों ने बहिष्कार का अह्वान किया है। इसका असर मैच की तैयारियों पर दिख रहा है।
शहर से लगभग आठ किलोमीटर दूर स्थित स्टेडियम की सड़क पर चार किलोमीटर पहले से ही नाकाबंदी कर दी गई है और मीडिया के अलावा स्टेडियम में काम कर रहे अधिकारी और कर्मचारी लोग ही स्टेडियम तक जा सकते हैं। धारा 163 मैच के ख़त्म होने के बाद 7 अक्तूबर तक रहेगी, जब तक कि दोनों टीमें सीरीज़ के दूसरे मैच के लिए नई दिल्ली ना रवाना हो जाएं।
फ़िलहाल गुप्ता ख़ुश हैं कि उनके शहर में 14 साल के 'क्रिकेट का वनवास' ख़त्म हो रहा है और अब वह नए स्टेडियम में फिर से एक ऐतिहासिक मैच की स्कोरिंग करने को तैयार हैं।