कुमार कुशाग्र: झारखंड क्रिकेट के वंडर ब्वॉय से IPL तक का सफ़र
कुशाग्र 12 साल की उम्र में ही अंडर-16 और 16 साल की उम्र में ही इंडिया अंडर-19 टीम में आ गए थे
राजन राज और शशांक किशोर
22-Dec-2023
"मैंने जब भी एमएस धोनी की तरह तेज़ी से स्टंपिंग करने का प्रयास किया है, तब मुझे अपने आप यह समझ में आ जाता है कि मुझे और कितना कुछ सीखना है" • ICC via Getty Images
अगर पिछले सप्ताह कुमार कुशाग्र को किसी अनजाने नंबर से कॉल आता तो शायद वह उसे नहीं उठाते। वह ऐसा मान लेते कि कॉल किसी टेलीमार्केटिंग या लोन देने वाली कंपनी कर रही है। हालांकि पिछले दो दिनों में उन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा कॉल उठाने की कोशिश की है, इसमें से कुछ कॉल दिल्ली कैपटिल्स की टीम की तरफ़ से भी थी, जिन्होंने IPL नीलामी में कुशाग्र को 7.2 करोड़ रूपये में ख़रीदा है। इसके अलावा कुछ कॉल पत्रकारों, लोकल न्यूज़ चैनलों और उनकी जान पहचान के लोगों का था।
दिल्ली कैपिल्स की टीम में चुने जाने के बाद कुशाग्र के क्रिकेटिंग करियर को नया आयाम मिला है। वह इस बात को स्वीकार करते हैं कि यह उनके जीवन के बेहतरीन पलों में से एक है। उन्होंने कहा, "ईमानदारी से कहूं तो मुझे यह बिल्कुल भी भरोसा नहीं था कि मुझे इतनी बड़ी रक़म के साथ चुना जाएगा। मैं मोबाइल पर इस नीलामी को देख रहा था। नीलामी के दौरान जब जब बोलियां ऊंची होती गई, तो मैंने अपने मोबाईल को नीचे रख दिया। हम रांची में रणजी ट्रॉफ़ी शिविर में थे और मेरी टीम के साथी लगातार दरवाज़ा खटखटा रहे थे। वे सभी अंदर आए और मुझे गला लगाने लगे। वह एक अविश्वसनीय पल था"
नीलामी के दौरान कुशाग्र को अपने दल में शामिल करने के लिए गुजरात टाइटंस और दिल्ली कैपिटल्स की टीम में जबरदस्त संघर्ष देखने को मिला। चेन्नई ने भी कुशाग्र को ख़रीदने का प्रयास किया था लेकिन वह 60 लाख की बोली लगाने के बाद हट गए थे। इसके बाद लगभग पांच मिनट तक कुशाग्र चकित होकर बैठे रहे। जैसे ही दिल्ली की टीम ने उनके लिए आख़िरी बोली लगाई, उन्होंने तुरंत जमशेदपुर में मम्मी-पापा को फ़ोन लगाया।
वह कहते हैं, "मैं रोने लगा था, मैं थोड़ा भावुक हो गया था।" दूसरी ओर, उनके पिता शशिकांत के पास भी कोई शब्द नहीं था। शशिकांत के ऑफ़िस के व्हाट्सएप्प ग्रुप में बधाई संदेशों की बाढ़ आ गई थी।
शशिकांत कहते हैं, ''हर कोई एक बड़ी पार्टी की मांग कर रहा था। मुझे लगा कि यह कोई बड़ा उत्सव है और आस-पास की दुनिया काफ़ी ख़ुशहाल हो गई है। हम घर पर टीवी में नीलामी को देख रहे थे। हमें नहीं पता था कि इस घटना के बाद कैसी प्रतिक्रिया दें, क्योंकि हम इसके लिए तैयार नहीं थे। हम उसके चयन से ही काफ़ी ख़ुश थे। उस वक़्त के लिए हम यह बिल्कुल नहीं सोच रहे थे कि वह किस टीम में गया है।"
कुशाग्र के पिता जमशेदपुर में जीएसटी कमिशनर हैं और उनकी मां एक गृहिणी हैं। उनकी दो छोटी बहनें पढ़ाई करती हैं और एक बहन डॉक्टर बनना चाहती है। कुशाग्र स्वयं एक अच्छे छात्र थे और उन्होंने मिडिल स्कूल तक अपनी पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया। लेकिन एक बार जब वह 12 साल की उम्र में झारखंड अंडर-16 टीम में शामिल हुए, तो वह पूरी तरह से क्रिकेट के हो गए।
ऐसा लग सकता है कि यह बहुत पुरानी बात है, लेकिन वह अभी भी केवल 19 साल के हैं। चार साल पहले ही 2019-20 में सीके नायडू ट्रॉफ़ी में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर उन्हें भारत अंडर -19 टीम में चुना गया था। तब शशिकांत ही उनके कोच थे और बॉब वूल्मर की क़िताब 'द आर्ट एंड साइंस ऑफ़ क्रिकेट' उनका कोचिंग मैनुअल था।
शशिकांत कहते हैं, ''मैं वूल्मर की क़िताब से काफ़ी सावधानीपूर्वक नोट्स बनाता था और एक स्थानीय कोच दीपक डे से मदद लेकर कुशाग्र को नेट्स में अभ्यास करवाता था।' मैं नहीं चाहता था कि वह स्कूल के बाद क्रिकेट कोचिंग सेंटर जाने के लिए समय बर्बाद करे। मैंने अपने घर के पास ही नेट्स लगवा दिया था। हमने एक पिच बनाई थी, जिस पर दीपक भाई और कुछ अन्य साथी गेंद फेंकने में घंटों बिताते थे। मेरे द्वारा बनाए गए नोट्स, कुशाग्र के लिए उनका पहला क्रिकेट प्रशिक्षक था। लेकिन एक बार जब वह भारत के अंडर -19 शिविर में पहुंचे, तो मुझे पता था कि वह राहुल द्रविड़ और एनसीए टीम के सुरक्षित हाथों में थे।''
तमिलनाडु के ख़िलाफ़ 2022 के एक रणजी मैच में कुशाग्र ने बेहतरीन अर्धशतकीय पारी खेल कर झारखंड के लिए जीत की नींव रखी थी•PTI
दिल्ली में कुशाग्र रिकी पोंटिंग और सौरव गांगुली के साथ होंगे। गांगुली ने पहली बार कुशाग्र को अगस्त में देखा था, जब उन्होंने स्थानीय भारतीय खिलाड़ियों के लिए एक कंडीशनिंग कैंप का आयोजन किया था।
वह उस समय देवधर ट्रॉफ़ी में कुशाग्र के खेल से प्रभावित हुए थे, जिसमें उन्होंने पूर्वी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। कुशाग्र उस टूर्नामेंट में ईस्ट जोन के दूसरे सबसे बड़े स्कोरर थे और उन्होंने पांच पारियों में 109.13 की स्ट्राइक रेट से 227 रन बनाए थे। ये सभी रन उन्होंने ज़्यादातर नंबर 7 पर बल्लेबाज़ी करते हुए बनाए थे।
कुशाग्र को खु़शी है कि विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी में महाराष्ट्र के ख़िलाफ़ 36 गेंदों में 67 रन की उनकी सबसे प्रभावशाली पारी उस मैच में आया था, जो टीवी पर दिखाया जा रहा था।
शशिकांत बताते हैं, ''गांगुली ने ट्रायल के दौरान भी कुशाग्र का भरपूर समर्थन किया था। उन्हें दिल्ली की टीम के द्वारा तीन शिविरों के लिए बुलाया गया था। तो कहीं न कहीं हमें लगा कि कुशाग्र के पास चयनित होने का एक मौक़ा है।"
कुशाग्र ने छोटी उम्र में ही अपनी पहचान बना ली थी, लेकिन पहली पसंद के विकेटकीपर के रूप में टीमों में जगह बनाना कठिन था। वह 2020 में भारत की अंडर-19 विश्व कप टीम का हिस्सा थे, लेकिन वह मुख्य रूप से रिज़र्व खिलाड़ी थे। टीम प्रबंधन ने अपनी पहली पसंद के विकेटकीपर बल्लेबाज़ के रूप में ध्रुव जुरेल को प्राथमिकता दी थी। कुशाग्र को जापान के ख़िलाफ़ सिर्फ़ एक मैच खेलने को मिला था।"
फिर कोविड आया और क्रिकेट रुक गया। लेकिन एक बार फिर से क्रिकेट शुरू होने पर कुशाग्र को बड़ा मौक़ा मिला। इशान किशन भारतीय टीम के साथ थे और वह नियमित रूप से झारखंड के लिए नहीं खेल पा रहे थे। ऐसे में झारखंड की टीम में कुशाग्र रिज़र्व से पहली पसंद बन गये। इस मौक़े ने कुशाग्र के क्रिकेट को संवारने का काम किया।
उन्होंने पहली बार 2021-22 सीज़न में तमिलनाडु के ख़िलाफ़ रणजी ट्रॉफी मैच में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। उस मैच में एक स्पिन लेती पिच पर अर्धशतकीय पारी खेल कर झारखंड के लिए जीत की नींव रखी। उस मैच में झारखंड के चार बल्लेबाज़ सिर्फ़ 49 के स्कोर पर पवेलियन लौट गए थे लेकिन कुशाग्र ने संयमित तरीक़े से अपनी पारी को आगे बढ़ाते हुए टीम के लिए जीत की नींव रखी।
फिर नागालैंड के ख़िलाफ़ प्री-क्वार्टर फ़ाइनल में उन्होंने 266 रन बनाए। अपनी उस पारी से वह जावेद मियांदाद के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए प्रथम श्रेणी पारी में 250 या उससे अधिक रन बनाने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए थे। उन दो प्रदर्शनों से कुशाग्र का आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ा था। उसके बाद इस सीज़न की शुरुआत से पहले इशान किशन के साथ एक लंबी बातचीत ने कुशाग्र के लिए काफ़ी कारगर रही।
कुशाग्र कहते हैं, "रांची में मेरी मुलाकात इशान (किशन) भैया से हुई। हमने लंबी बातचीत की। उस कैंप में उन्होंने मुझसे जो बातें पूछीं, उनमें से एक यह थी कि क्या बल्लेबाज़ी के लिए मुझे जितना समय मिल रहा है, उससे मैं खु़श हूं। उन्होंने मुझे बताया कि एक युवा खिलाड़ी के रूप में आप रोजाना 20 मिनट तक बल्लेबाज़़ी करके संतुष्ट नहीं हो सकते। अभ्यास के दौरान वह एक घंटे पहले आते थे और फिर देर तक बल्लेबाज़ी करते थे। मैंने भी कुछ वैसा ही करने का प्रयास किया। हमारे पास हमेशा नेट गेंदबाज़ होते थे। उससे मैंने यह सीखा था कि अगर आप किसी चीज़ को आगे लेकर जाना चाहते हैं, तो आपको ही ज़िम्मेदारी लेकर चीज़ों को आगे बढ़ाने का प्रयास करना होगा। उस बातचीत के बाद मुझे यह भी पता चला कि चीज़ों को पूरा करने के लिए मुझे और अधिक प्रयास करने होंगे।"
पिता शशिकांत बॉब वूल्मर के क़िताब से नोट्स बना कर कुशाग्र को क्रिकेट सिखाते थे•Kumar Kushagra
दिनचर्या में आए इस बदलाव से कुशाग्र का आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ा और उनकी खेल की समझ में सुधार हुआ। कुशाग्र अब टीम के भीतर विभिन्न बल्लेबाज़ी भूमिकाओं को अपनाने में अधिक सहज हो रहे थे। वह हमेशा एक अच्छा विकेटकीपर रहे हैं और अब जब उनकी बल्लेबाज़ी अच्छी हो रही थी, तो एक नई उम्मीद जगी थी कि उन्हें जल्दी ही किसी बड़ी टीम से न्योता आने वाला है।
जहां तक दिल्ली की बात है, उन्हें चोटिल ऋषभ पंत का विकल्प ढूंढने में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा है। पिछले साल उन्होंने चार विकेटकीपरों के विकल्पों को देखा और अंततः बंगाल के अभिषेक पोरेल को चुना, जो विकेटकीपिंग तो बेहतरीन कर रहे थे, लेकिन बल्लेबाज़ी में कुछ ख़ास नहीं कर सके।
कुशाग्र कहते हैं, ''मैं इसे सीखने और बेहतर होने के अवसर के रूप में देखता हूं। आईपीएल में खेलने का सपना कौन नहीं देखता? मैं भी उसी तरह के ख़िलाड़ियों के साथ बड़ा हुआ हूं, जो आईपीएल में हिस्सा लेने का सपना देखते हैं। हम सभी अपने प्रिय खिलाड़ियों को देखते हुए बड़े हुए हैं और कभी-कभी उनकी नकल करने की कोशिश भी करते हैं। मैंने कई बार एमएस धोनी की तरह स्टंपिंग करने का प्रयास किया है लेकिन जब आप ऐसा करने का प्रयास करते हैं, तब आपको चुपचाप भीतर से एहसास होता है कि मुझे अभी भी कितनी दूरी तय करनी है।"
कुशाग्र भी झारखंड से ही हैं लेकिन अभी तक धोनी से नहीं मिल पाए हैं। शायद 2024 में वह धोनी से मिलने में सफल रहें।
"वह हमारे लिए हीरो हैं। ऐसा इसलिए नहीं कि वह हमारे ही राज्य से हैं, बल्कि इसलिए कि वह एमएस धोनी हैं। उनसे मिलना एक अवास्तविक एहसास होगा।"
शशिकांत के पास अपने बेटे के लिए केवल एक ही सलाह है और यह सलाह वह उन्हें बचपन से देते आए हैं। कुशाग्र ने काग़ज़ में लिखे उस संदेश को अपने कमरे के दरवाजे पर चिपका कर रखा है - "सीखना बंद, तो जीतना बंद।"